नीतिगत पहल
खेतिहर कर्ज पर केंद्रित विशेषज्ञ समूह(एक्सपर्ट ग्रुप) के दस्तावेज(जुलाई 2007) के अनुसार - http://www.igidr.ac.in/pdf/publication/PP-059.pdf: कुछ सुझाव • खेती के उत्पादनगत आधार में विस्तार देना जरुरी है। इस प्रक्रिया में जोर सीमांत और छोटे किसानों पर दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। इसके समुचित प्रद्योगिकी का विकास तो जरुरी है ही साथ ही साथ मौजूदा सांस्थानिक बनावट के वैकल्पिक रुपों की खोज भी जरुरी है।
• ध्यान रखा जाना चाहिए कि खेतिहर समाज को सांस्थानिक कर्जा ज्यादा से ज्यादा मिले। जिन किसान परिवारों को सांस्थानिक कर्जा नहीं हासिल हो पाता उन्हें इस दायरे में लाना होगा। कर्ज देने की मौजूदा प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार जरुरी है। किसानों के ऊपर महाजनों के कर्ज का जो बोझा बरकरार है उसे कम करना होगा। इसके लिए जरुरी है कि अनौपचारिक स्रोतों से लिए गए कर्ज को औपचारिक ढांचे में लाया जाय।
• जो इलाके सिंचाई के लिए वर्षाजल पर निर्भर हैं वहां साल दर साल पर्यावरण का ज्यादा नुकसान होता है और उत्पादन में भी घट-बढ़ होते रहती है। इस बात के सघन प्रयास होने चाहिए कि ऐसे लाके के प्राकृतिक संसाधन पुनर्जीवन प्राप्त कर सकें और इन इलाकों के किसान परिवारों की आमदनी में एक किस्म की स्थिरता लायी जा सके।
• मौसम की भविष्यवाणी के लिए अंतरिक्ष और सूचना प्रौद्योगिकी पर जोर दिया जाना चाहिए।
• इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के जो कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं उनका लाभ गरीब किसान परिवारों को मिले। इसके लिए किसान-संघों को ऐसे कार्यक्रम के की बनावट, क्रियान्वयन और निगरानी के काम में शामिल किया जाना चाहिए।
• खेतिहर संकट से निपटने के लिए सरकार ने संकट से जूझ रहे 31 जिलों की पहचान की है और इन जिलों में राहत के उपाय किये किए हैं। ये जिले आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, और महाराष्ट्र में हैं। केंद्र सरकार के अतिरिक्त इन प्रदेशों की सरकार ने बी अपनी तरफ से राहत के प्रयास किये हैं। पंजाब सरकार ने भी कुत राहत के कदम उठाये हैं। इन उपायों के तहत संकट से जूझ रहे किसान परिवारों को मदद दी जा रही है।
• विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि किसानों को वित्तप्रवाह की मुख्यधारा में शामिल करने के काम में इस बात का प्रयाप्त ध्यान रखा जाना चाहिए कि छोटे-मोटे कर्ज लेने वाले किसान परिवार की वित्तीय जरुरतें किस किस्म की हैं। सांस्थानिक कर्ज देने की मौजूदा प्रमाली में उन किसान परिवारों को शामिल किया जाना चाहिए जो अभी तक सांस्थानिक कर्ज नहीं ले पा रहे।
• ग्रामीण इलाकों में बैंकों की सचल शाखा खोलने की त्वरित जरुरत है ताकि किसानों को उनके दरवाजे पर जाकर वित्तीय सहायता उपलब्ध करवायी जा सके। इससे कर्ज देने के क्रम में आने वाली लागत और इस लागत के कारण कर्ज लेने वाले किसान पर पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ को कम किया जा सकेगा।
• वशेषज्ञ समूह का मानना है कि किसान क्रेडिट कार्ड को इलेक्ट्रानिक रुप देकर इसे बहुआयामी भारत किसान कार्ड के रुप में जारी किया जाना चाहिए। इस कार्ड पर किसान की जमीन, जायदाद सहित इन्य संपदा और कर्ज की जिन सुविधाओं का उसने इस्तेमाल किया है सके ब्यौरे दर्ज होने चाहिए। इस काम को एक मशन मानकर इसे उसी त्वरा से किया जाना चाहिए। .
• लीड बैंक स्कीम की रचना इस उद्देश्य से की गई थी कि जिला स्तरीय नियोजन अधिकारियों और बैंकों के बीच बेहतर तालमेल कायम हो सके। अब परिद-श्य में कुछ नए संगठन भी आ गये हैं, जैसे स्व सहायता समूह। किसानों के बीच कर्ज के लेन देने को लेकर जानकारी का बड़ा अभाव है।विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि भारतीय रिजर्व बैंक को लीड बैंक स्कीम को मजबूती देने के लिए प्रयास करने चाहिए।
• विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि जमीन के दस्तावेजों को अद्यतन रुप दिया जाना चाहिए और उन्हें कंप्यूटरीकृत किया जाना चाहिए।
• विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि जो किसान पट्टे पर जमीन लेकर उस पर खेती कर रहे हैं उन्हें पट्टे पर ली गई जमीन के ब्यौरों को देखकर कर्ज की सुविधा उपलब्ध करायी जानी चाहिए। इसके अलावा पट्टे पर ली गई जमीन पर किसानी के लिए दिए जाने वाले कर्ज से संबंधित कानून बनाने के क्रम में सीमांत और छोटे किसानों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।
• विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि माइक्रो फाइनेंस की संस्थाओं को मुख्यधारा की बैंकिंग का अविभाज्य अंग बनाया जाय।
• राष्ट्रीय कृषि एवम् ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड) को चाहिए कि वह ग्रामीण क्षेत्र में खेती और गैर खेतिहर कामों के विकास के लिए बन रही परियोजनाओं की तैयारी में बैंकों को समुचित प्रशिक्षण और दिशा निर्देश प्रदान करे।
• बैंकों को चाहिए कि वे अपने कर्मचारियों में खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों के साईंस ग्रेजुएट को शामिल करें।
• समूह का विचार है कि खेती को प्राथमिकता के आधार पर 18 फीसदी कर्ज देने की बैंकों की नीति एक दूरगामी महत्त्व वाली नाति है और बैंकों ने इसके अनुपालन की प्रतिबद्धता भी जतायी है। लेकिन बैंकों ने अपनी इस प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे उपाय करे कि बैंक अपनी प्रतिबद्धता को सुनिश्चित तौर पर पूरा कर सकें।
• विशेषज्ञ समूह का सुझाव है कि राज्य और जिला स्तर पर किसानों की जीविका को बढ़ावा देने के लिए एक खास कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए ।राज्य स्तर पर इस कार्यक्रम की कमान मुख्यमंत्री के हाथों में और जिसा स्तर पर कलेक्टर के हाथों में सौंपी जाय। इस कार्यक्रम को कारगर बनाने के लिए कुछ सहायक केंद्र बनाये जाये जिनके पास किसानों को को एकजुट करने, उनके लिए आर्थिक अवसर पहचानने और किसानों के लिए विभिन्न स्तर पर चल रही योजनाओं के बीच तालमेल बैठाने की पेशेवर दक्षता हो। इस कार्यक्रम में छोटे और सीमांत किसानों पर खास जोर दिया जाना चाहिए।
• फसल के मारे जाने की स्थिति में फसली बीमा किसानों को संकट से उबारने का काम करती है। इसके महत्त्व को देखते हुए समूह का सुझाव है कि फसल बीमा योजना की समग्र समीक्षा होनी चाहिए और इसे कारगर बनाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सलाह ली जानी चाहिए।
• अगर किसी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं तय किया गया है या फिर वह न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किए जाने वाले फसलो की श्रेणी में सामिल नहीं है परंतु उस फसल के दामों में कमी आने से किसान को संकट व्यापता है सरकार को चाहिए कि मूल्यों के उतार चढ़ाव के जोखिम से बचाने के लिए कायम किए गए फंड(प्राइस रिस्क मिटिगेशन फंड) से किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करे।
• ऐसी तकनीकी व्यवस्था कायम की जानी चाहिए कि सिंचाई के लिए वर्षाजल पर आधारित और किसानी के संकट से जूझ रहे जिलों में उपग्रह से प्राप्त चित्रों के इस्तेमाल से पहले ही पता लगाया जा सके कि इलाके में उपज की हालात कैसे रहने वाले हैं। .
• पचायत या प्रखंड स्तर पर ऐसी प्रयोगशालाएं प्रयाप्त संख्या में खोली जानी चाहिए जहां खाद, बीज, कीयनाशक आदि की गुणवत्ता परखी जा सके।
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