उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सहायक नदियां भी दुर्दशा का शिकार हैं। रुहेलखंड में गंगा की सहायक नदी इतनी ज्यादा प्रदूषित हैं कि उसके पानी से फसलों को नुकसान पहुंच रहा है। गोमती की सहायक नदियों में पानी सूख चुका है। उत्तराखंड में गंगा की सहेलियों के लिए बिजली उत्पादन ने संकट पैदा कर दिया है। एक नजर-
रुहेलखंड में रामगंगा प्रदूषण की शिकार
बरेली। रुहेलखंड में गंगा की सहायक नदी रामगंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि इससे फसलों को नुकसान पहुंच रहा है। बाकी नदियों की हालत खराब है। सबसे बुरा हाल रामगंगा, देवरनिया और नकटिया नदी का है। इसके बावजूद वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के बजट को अब तक मंजूरी नहीं मिली है।
वेग मोड़ने की तैयारी
उत्तराखंड में नदी बचाओ अभियान से जुड़े आंदोलनकारियों का कहना है कि राज्य में 24,876 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए नदी घाटियों में 220 परियोजनाएं बनने वाली हैं। इनके लिए नदियों का वेग मोड़कर इन्हें 700 किलोमीटर लंबी सुरंगों में डाला जाएगा। इन परियोजनाओं के पूरा होते ही ज्यादातर नदियों का प्राकृतिक स्वरूप बदल जाएगा।
उत्तराखंड में गंगा की सहेलियां संकट में
उत्तराखंड में गंगा के कुल पानी में 70 फीसदी योगदान सहायक नदियों का है। जिस तरह बिजली के लिए इनके प्रवाह को बांधा जा रहा है और बद्रीनाथ से देवप्रयाग तक इनमें जगह-जगह गंदे नाले समा रहे हैं, उससे इन नदियों पर भी संकट आ गया है।
गोमती की सहायक नदियों में नहीं बचा पानी
गोमती नदी अब बदबू और गंदगी के लिए जानी जाती है। गोमती को जीवन देने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई है। केवल लखनऊ में आठ किलोमीटर तक नदी के तटों को सुंदर बनाने और गंदगी निकालने के लिए ड्रेजिंग का काम चल रहा है। गोमती नदी में मिलने वाली और जल देने वाली 22 सहायक नदियां हैं। उनमें से कुछ में ही पानी बचा है। ज्यादातर सूख चुकी हैं। गोमती के लिए काम करने वाली लोक भारती संस्था के संगठन सचिव बृजेन्द्र पाल बताते हैं कि नदी बचाने को समुचित प्रयास नहीं हुए। शहर में हैदर कैनाल जैसी सहायक नदियां नाले में बदल गईं हैं।
नहीं सुधरी हालत
1985 में गंगा और उसकी सहायक नदियों में गंदगी जाने से रोकने के लिए गंगा एक्शन प्लान बना। इसके बावजूद आज भी बद्रीनाथ, जोशीमठ, पीपलकोटी, नंदप्रयाग, गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, गोचर, रुद्रप्रयाग, श्रीकोट, श्रीनगर, कीर्तिनगर, बागवान और देवप्रयाग में गंदगी अलकनंदा में गिर रही है।
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