सूचना का अधिकार
नेशनल कंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इन्फारमेशन और आरटीआई
एसेसमेंट एंड एनालिसिस ग्रुप सहित अन्य संगठनों द्वारा संयुक्त रुप से
करवाये गये एक सर्वेक्षण पर आधारित राइट टू इन्फारमेशन-इंटरिम
फाइडिंग्स् ऑव पीपल्स फाइडिंग्स ऑव आरटीआई एसेसमेंट(२००८) नामक
दस्तावेज के अनुसार-
http://www.nyayabhoomi.org/rti/downloads/raag_survey.pdf:
- सूचना का अधिकार अधिनियम बुनियादी ढांचे के अभाव से
ग्रस्त है। लोक सूचना अधिकारी को अपनी भूमिका के बारे में सही सही जानकारी
नहीं है। ग्रामीण भारत में जितने लोक सूचना अधिकारियों का साक्षात्कार लिया
गया उसमें लगभग आधे ने कहा कि हमें पता ही नहीं कि हम लोक सूचना अधिकारी
का काम कर रहे हैं।
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लोक सूचना अधिकारी सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत
सूचना देने के बाबत आयी अर्जियों को लेने और मांगी गई सूचना को देने का
मुख्य जिम्मा संभालता है। सर्वेक्षण के दौरान अधिकतर लोकसूचना अधिकारियों
का कहना था कि हमें पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला है, इस विधेयक से संबंधित
प्रावधानों की ठीक ठीक जानकारी नहीं है और इस वजह से सूचना के अधिकार
अधिनियम के अन्तर्गत आयी अर्जियों के निबटान में बाधा आती है।
सूचना के अधिकार अधिनियम ने लोगों के जीवन पर सकारात्मक असर डाला है। इस
मामले में यह अधिनियम अनूठा है। अधिक से अधिक लोग सूचना के अधिकार अधिनियम
का प्रयोग करके सूचना मांगने के लिए अर्जियां दे रहे हैं। पहले सरकारी
अधिकारी गण ऐसी सूचनाओं को देने से इनकार कर देते थे।
- सरकार का रवैया इस मामले में धीमा है। सूचना का अधिकार
अधिनियम का उपयोग करके सूचना मांगने के लिए जितनी अर्जियां आती है उनमें
से दो तिहाई का जवाब सरकारी अधिकारी देते हैं। सिर्फ एक तिहाई अर्जियों का
जवाब ३० दिन के अंदर मिल पाता है, जैसा कि नियम है।
- सूचना के अधिकार अधिनियम पर अमल के मामले में सबसे
पिछड़ा राज्य मेघालय है। यहां गांव के स्तर पर कोई भी लोक सूचना अधिकारी
नहीं है। राज्स्थान इस मामले में सबसे आगे है। यहां ना सिर्फ गांव के स्तर
पर लोकसूचना अधिकारी उपलब्ध मिले बल्कि उनका साक्षात्कार भी लिया जा सका।
सर्वेक्षण का एक निष्कर्ष यह भी है कि महिलाओं से कहीं ज्यादा पुरुष इस
अधिकार का उपयोग कर रहे हैं। ग्रामीण स्तर पर अर्जियां देने वालों में
पुरुषों की तादाद बहुत ज्यादा है।
- महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार अधिनियम को जबर्दस्त
सफलता मिली है। पिछले तीन सालों में यहां ३ लाख ७० हजार अर्जियां आयीं।
सूचना के अधिकार अधिनियम के पक्ष में काम करने वालों का कहना है अर्जियों
पर जवाब को रोककर रखने का सरकारी चलन चिन्ता जगाने वाला है।
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Rural Expert
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