मानव विकास सूचकांक
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यूएनडीपी द्वारा प्रस्तुत ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2011- सस्टेनेबेलिटी एंड इक्यूटी:अ बेटर फ्यूचर फॉर ऑल नामक दस्तावेज के अनुसार-
http://hdr.undp.org/en/media/HDR_2011_EN_Summary.pdf http://hdr.undp.org/en/media/PR1-main-2011HDR-English.pdf • साल 2011 में मानव विकास सूचकांक के हिसाब से 185 देशों के बीच भारत का स्थान 134वां(HDI value 0.547) रहा जबकि पाकिस्तान का स्थान 145 वां (HDI value 0.5040) और चीन का 101 वां(HDI value 0.687) रहा। श्रीलंका 97 वें पायदान(HDI value 0.691) पर और बांग्लादेश 146 वें पायदान(एचडीआई मूल्य-0.500) पर हैं। वैश्विक औसत( एचडीआई मूल्य-0.682) के हिसाब से भारत की प्रगति मानव विकास निर्देशांकों के पैमाने पर थोड़ी कम है।
• लैंगिक असमानता के सूचकांकों के हिसाब से भारत को मानव-विकास के पैमाने पर 129 वां स्थान(जेंडर इन्इक्यूअलिटी इंडेक्सGII value- 0.617) हासिल हुआ है जबकि पाकिस्तान को 115 वां(GII value 0.573) और चीन को 35वां(GII value 0.209)। श्रीलंका का स्थान इस मामले में 74 वां (GII value 0.419) और बांग्लादेश का 112 वां (GII value 0.550) है। • भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक(मल्टीडायमेंशनल पॉपर्टी इंडेक्स) के हिसाब से सर्वाधिक गरीब आबादी रहती है। • भारत में बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक के हिसाब से गरीब लोगों की संख्या 61 करोड़ 20 लाख है यानी देश की कुल आबादी का आधे से ज्यादा। यह संख्या बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक के हिसाब से उप-सहारीय अफ्रीकी देशों में जितने लोग गरीब हैं उससे ज्यादा है। • दक्षिण एशिया में बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक के पैमाने पर गरीब माने गए कुल लोगों में से 97 फीसदी को स्वच्छ पेयजल,शौचालय या आधुनिक ईंधन का अभाव सहना पड़ता है जबकि 18 फीसदी को इन तीनों का ही अभाव है। बहुआयामी निर्धनता सूचकांक के हिसाब से गरीब माने गए दक्षिण एशिया के लोगों में से 85 फीसदी साफ-सफाई की सुविधाओं से महरुम हैं। • मानव विकास सूचकांक(एचडीआई) के पैमाने पर सर्वाधिक अग्रणी चार देशों के नाम हैं- नार्वे (0.943), आस्ट्रेलिया (0.929), नीदरलैंड (0.910)और अमेरिका (0.910). मानव विकास सूचकांक के पैमाने पर सर्वाधिक कम अंक हासिल करने वाले चार अग्रणी देशों के नाम हैं-कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (0.286),नाईजर (0.295),बुरुंन्डी (0.316)और मोजाम्बिक (0.322)। • जब मानव विकास सूचकांक को किसी देश में मौजूद शिक्षागत, स्वास्थ्य-सुविधागत या आमदनी आधारित असमानता के साथ मिलान करके देखा गया तो परिणाम चौंकाने वाले थे। मानव-विकास सूचकांक के पैमाने पर अग्रणी 20 देशों में शामिल कुछ सर्वाधिक धनी देश अपना पहले वाला (यानी अग्रणी 20) स्थान बरकरार ना रख सके: संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान इस मिलान के बाद #4 थे से #23 वां और कोरिया गणराज्य का स्थान #15वें से #32 वां तथा इजरायल का #17 वें से #25 वां हो गया। • लैंगिक असमानता सूचकांक के हिसाब से देशों को क्रमवार रखने से पता चलता है कि स्वीडन में स्त्री-पुरुष की समानता के मामले में सर्वाधिक अग्रणी देश है। जेंडर इन्इक्वलिटी देखने के लिए मानकों का एक संयुक्त पैमाने बनाया जाता है। इसमें देखा जाता है कि स्त्री की स्थिति प्रजनन-स्वास्थ्य, विधालय में बिताये गए कुल साल, संसद में प्रतिनिधित्व और श्रम-बाजार में भागीदारी के लिहाज से कैसी है। लैंगिक-समानता के लिहाज से जीआईआई इंडेक्स पर स्वीडन के बाद स्थान नीदरलैंड, डेनमार्क, स्वीट्जरलैंड, फिनलैंड,नार्वे,जर्मनी,सिंगापुर,आईसलैंड और फ्रांस का है। लैंगिक असमानता सूचकांक के हिसाब से यमन 146 देशों के बीच सबसे नीचे के पायदान पर है। उसके बाद चाड, नाईजर, माली, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑव कोंगो, अफगानिस्तान, पापुआ न्युगिनी, लाइबेरिया, केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य और सियरा लियोन का स्थान है। • साल 1970 के बाद से उत्सर्जन में हुई बढोतरी में तीन चौथाई हिस्सा निम्न, मध्यम और उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों का है, फिर भी ग्रीन-हाऊस गैसों के उत्सर्जन के मामले में उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश बाकी देशों की तुलना में कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं। • अति उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों में आम आदमी निम्न, मध्यम या उच्च विकास सूचकांक वाले देशों के आम आदमी की तुलना में चार गुना ज्यादा कार्बन डायआक्साईड के उत्सर्जन का जिम्मेदार है जबकि मीथेन और नाईट्रस ऑक्साईड के उत्सर्जन के मामले में दोगुना। अति उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश का आम नागरिक निम्न मानव विकास सूचकांक वाले देश के आम आदमी की तुलना में 30 गुना ज्यादा कार्बन डायआक्साईड के उत्सर्जन का जिम्मेदार है। • वैश्विक स्तर पर तकरीबन 40 फीसदी जमीन भू-अपर्दन, कम उर्वराशक्ति और अत्यधिक चराई के कारण अपनी गुणवत्ता खो चुकी है। भू-उत्पादकता घट रही है। इससे उपज में कम से कम 50 फीसदी का घाटा हो रहा है। • पानी की कुल खपत में से 70-85 फीसदी का इस्तेमाल खेती में होता है जबकि विश्व के अन्नोत्पादन के 20 फीसदी में पानी का इस्तेमाल अनुचित रीति से होता है। इससे वैश्विक स्तर पर खेती की बढ़वार में भविष्य में कठिनाइयां आयेंगी। • एक बड़ी चुनौती निर्वनीकरण की है।साल 1990 से 2010 के बीच लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई तथा उपसहारीय अफ्रीकी देशों में वनों का तेजी से नाश हुआ है। वनों के नाश के मामले में इसके बाद स्थान अरब देशों का है। • तकरीबन 35 करोड़ जन-आबादी या तो जंगलों के अत्यंत निकट रहती है या फिर अपनी जीविका के लिए वनों पर निर्भर है। वनों के नाश का सर्वाधिक असर इनकी जीविका पर पड़ेगा। • तकरीबन साढे चार करोड़ लोग अपनी जीविका मछली मारकर कमाते हैं। इसमें 60 की तादाद में महिलायें हैं। अत्यधिक मत्स्य-आखेट और पर्यावरण-परिवर्तन का असर ऐसे लोगों की जीविका पर पड़ रहा है। • तकरीबन 120 देशों के संविधान में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के बारे में विधान किया गया है लेकिन ज्यादातर देशों में ऐसे विधानों का पालन कायदे से नहीं होता। • दक्षिण एशिया विश्व के सर्वाधिक वायु-प्रदूषणग्रस्त इलाकों में से एक है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के शहर अत्यंत गंभीर रुप से वायु-प्रदूषण के शिकार हैं। • मानव-विकास में विजली की भूमिका असंदिग्ध और अपरिहार्य है। फिर भी, विश्व में बिजली वंचित लोगों की संख्या 1.5 अरब है यानी हर पाँच में से एक व्यक्ति बिजली-वंचित है। वैश्विक स्तर बिजली की आपूर्ति साल 2010 में अपने चरम पर पहुंची। इसमें पुनपोहन(रिन्यूएबल) बिजली की मात्रा 25 फीसदी थी और इससे विश्व की बिजली आपूर्ति का 18 फीसदी हिस्सा हासिल हुआ। • यदि फॉरेन एक्सचेंज ट्रेडिंग पर मात्र 0.005 फीसदी का कर लगा दिया जाय तो $40 अरब की कमाई हो सकती है। इस रकम को गरीब देशों को मदद के रुप में दिया जा सकता है। इस प्रकार के कराधान से गरीब देशों को दी जाने वाली मदद बढ़कर $130 अरब हो जाएगी। • भारत में मनरेगा पर साल 2009 में जीडीपी का 0.5 फीसदी खर्च हुआ और इससे साढ़े चार करोड़ लोगों यानी देश की श्रमशक्ति के दसवें हिस्से को फायदा पहुंचा। • निम्न मानव विकास सूचकांक वाले देशों में हर 10 बच्चे( प्राथमिक पाठशाला जाने वाली आयुवर्ग के) में 3 का नामांकन स्कूलों में नहीं हुआ है। इसमें कई बाधाएं आड़े आ रही हैं जिसमें कुछ तो पर्यावरणगत भी हैं। मानव-विकास-एक आकलन
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