कोविड-19 लॉकडाउन में बढ़ती समाचारों की खपत, गलत सूचनाओं का मकड़जाल और साइबर लूट

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published Published on Apr 22, 2020   modified Modified on Apr 22, 2020

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान लोग देश और दुनिया की ताजा सूचनाओं के लिए टीवी मीडिया और इंटरनेट का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. टीवी मीडिया और इंटरनेट की खपत में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है. टेलीविज़न मॉनिटरिंग एजेंसी BARC (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन की अवधि में टीवी पर समाचारों की खपत 298% बढ़ी है. इसके अलावा समग्र टीवी दर्शकों की संख्या में समाचारों का हिस्सा 7% से बढ़कर 21% हो गया है (कृपया तालिका:1 देखें).

तालिका:1 समग्र टीवी दर्शकों की संख्या में समाचारों का हिस्सा

Source: BARC and Nielsen: Crisis Consumption - An Insights Series Into TV, Smartphone. Please click here to access.

 

 कोविड-19 प्रकोप के दौरान डेटा मापक फर्म नीलसन औऱ BARC ने टीवी व्यूअरशिप और स्मार्टफोन के उपयोग पर ‘क्राइसिस कंजम्पशन: एन इनसाइट्स सीरीज इन टीवी, स्मार्टफोन एंड ऑडियंस’ नामक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में BARC और नीलसन ने जनवरी महीने के डेटा को कोविड-19 के पहले और इसकी तुलना में मध्य मार्च के डेटा को कोविड-19 के दौरान डेटा मानकर दोनों की तुलना की है. इसके अलावा स्मार्टफोन उपयोग से संबंधित डेटा के लिए 15-44 वर्षीय 120000 एंड्रॉइड स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं पर नज़र रखी गई थी. बिजनेस से संबंधित समाचारों की व्यूवरशिप 180% बढ़ गई है. इसकी तुलना में, इन्फोटेनमेंट, फिल्मों और बच्चों की शैली क्रमशः 63%, 56% और 39% बढ़ी है.

BARC के अनुसार, शीर्ष छह चैनलों (आज तक, इंडिया टीवी, रिपब्लिक भारत, ज़ी न्यूज़, एबीपी न्यूज़, न्यूज़ 18 इंडिया) को देखने वालों का हिस्सा कुल हिंदी समाचार दर्शकों के सेगमेंट का 17% हो गया है, जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान यह 8% था. इसके अलावा प्राइम-टाइम स्लॉट में, समाचार व्यूवरशिप 252% बढ़ी है, जिसमें हिंदी भाषी समाचार 260% और दक्षिण के लिए यह आंकड़ा 232%  है. नॉन-प्राइम टाइम स्लॉट में, यह व्यूवरशिप 344% बढ़ गई है, जिसमें हिंदी भाषी चैनलों के लिए यह आंकड़ा 385% और दक्षिण के लिए 283% है.

स्मार्टफोन के उपयोग पर ‘क्राइसिस कंजम्पशन: एन इनसाइट्स सीरीज इन टीवी, स्मार्टफोन एंड ऑडियंस’ नामक यह रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन के दूसरे सप्ताह तक लोगों द्वारा स्मार्टफोन उपयोग में लगभग 3 घंटे प्रति सप्ताह के हिसाब से बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 लॉकडाउन से पहले लोग 23.6 घंटे स्मार्टफोन पर बिताते थे, जोकि बढ़कर लॉकडाउन के दूसरे सप्ताह में 26.4 घंटे हो गया है.
लॉकडाउन के दूसरे सप्ताह में स्मार्टफोन पर समाचारों की खपत में 45% इजाफा हुआ है. लॉकडाउन से पहले लोग लगभग 27 मिनट प्रति सप्ताह के हिसाब से स्मार्टफोन पर समाचार पढ़ने में बिताते थे जो लॉकडाउन के दूसरे सप्ताह तक बढ़कर 40 मिनट हो गया है.(तालिका 1.1 देखें.)

तालिका 1.1: स्मार्टफोन पर समाचार पढ़ने के लिए इतना समय बिता रहे हैं यूजर्स
 

Source: BARC and Nielsen: Crisis Consumption - An Insights Series Into TV, Smartphone. Please click here to access.

 

फेक न्यूज
लॉकडाउन के दौरान सूचनाओं के लिए टीवी और स्मार्टफोन का उपयोग बढ़ने के साथ ही फेक न्यूज का खतरा भी बढ़ रहा है. कोविड-19 महामारी के दौरान फैल रही झूठी सूचनाओं पर रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन किया और एक साथ मिलकर 'टाईप्स, सोर्सेस और क्लेम्स ऑफ कोविड-19 मिसइंफोर्मेसन' नामक एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में COVID-19 से संबंधित गलत सूचनाओं के कुछ मुख्य प्रकारों, स्रोतों और दावों की पहचान की गई है, जिसके लिए फैक्टचेकर्स द्वारा गलत या भ्रामक साबित की गई 225 न्यूज रिपोर्टों का विश्लेषण किया गया है, जोकि जनवरी और मार्च 2020 के बीच अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थीं. 

फेक न्यूज के बढ़ते पैमाने के कारण की वजह से जनवरी से मार्च तक अंग्रेजी भाषा के स्वतंत्र फेक्ट-चेकर्स के फेक्ट्स चैक की संख्या 900% से अधिक हो गई है. (जैसा कि फेक्ट्स-चेकर्स के पास सीमित संसाधन हैं और सभी फेक न्यूज की जांच नहीं कर सकते हैं.) (तालिका 2 देखें.)

तालिका 2: स्वतंत्र फेक्ट-चेकर्स के फेक्ट्स चैक की बढ़ती संख्या

Source: Reuters Institute for the Study of Journalism - Types, Sources, and Claims of COVID-19 Misinformation. Please click here to access.

रिपोर्ट के अनुसार में अधिकांश (59%) गलत सूचनाएं कुछ तथ्यों को तोड़-मरोड़कर गलत सूचनाएं डालकर पेश की गई थीं और लगभग (38%) सूचनाएं पूरी तरह से गलत तथ्यों पर गढ़ी गई थीं. लगभग 87% गलत सूचनाओं के फैलने का माध्यम सोशल मीडिया था.

इस रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया पर राजनेताओं, मशहूर हस्तियों और अन्य प्रमुख सार्वजनिक हस्तियों द्वारा 20% गलत सूचनाएं शेयर की गई थीं, लेकिन उनके द्वारा गलत सूचनाएं सोशल मीडिया पर शेयर करने की वजह से उनका फैलाव 69% तक हो गया.  सोशल मीडिया पर अधिकांश गलत जानकारी आम लोगों द्वारा फैलाई गई थीं, लेकिन इनमें से अधिकांश पोस्ट बहुत कम लोगों तक पहुंच सकी. सभी गलत जानकारियों में से 39% भ्रामक सूचनाएं या झूठे दावे, सरकारी अधिकारियों और डब्ल्यूएचओ या यूएन जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों सहित सार्वजनिक प्राधिकरणों की कार्रवाइयों या नीतियों के नाम पर फैलाई गई थीं.

 पूरे भारत में कोरोनोवायरस के बारे में फैलती अफवाहों और फर्जी खबरों के जवाब में भारत के 300 वैज्ञानिकों ने Indian Scientists’ Response to CoViD-19 नामक एक ग्रुप बनाया है, और कोविड-19 से संबंधित अफवाहों को काउंटर करने के लिए और सही जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वेबसाइट बनाई है. उस वेबसाइट पर जाने के लिए यहां क्लिक करें.  

साइबर फ्रॉड
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कोविड-19 की आड़ में इंटरनेट पर लगातार साइबर अपराध बढ़ रहे हैं. इस संबंध में चेक प्वाइंट सोफ्टवेयर टैकनोलॉजी ने अध्ययन कर ग्लोबल थ्रेट इनडेक्स जारी किया है, जिसमें पाया है कि साइबर अपराधी, वायरस के फैलने से संबंधित कई स्पैम अभियानों के माध्यम से लोगों को अपने जाल में फंसाकर लूट रहे हैं और महामारी के मानवीय पक्ष का दोहन कर रहे हैं. जनवरी 2020 तक चेक प्वाइंट थ्रेट इंटेलिजेंस पर आधारित, वैश्विक रूप से पंजीकृत 4,000 से अधिक कोरोनोवायरस-संबंधित डोमेन हैं. इन वेबसाइटों में से 3% खतरनाक पाए गए और 5% अतिरिक्त संदिग्ध हैं. कोरोनवायरस- संबंधित डोमेन उसी अवधि में पंजीकृत अन्य डोमेन की तुलना में 50% अधिक खतरनाक हैं.(तालिका-3 देखें.)

तालिका -3: कोरोनोवायरस-संबंधित डोमेन्स रजिस्टर होने का साप्ताहिक आंकड़ा

Source: Check Point’s Global Threat Index. Please click here to access.

 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार WHO, UN और ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) जैसे नामी स्वास्थ्य संगठनों का उपयोग कर फर्जी इमेल भेजकर लोगों की महत्वपूर्ण सूचनाएं चुराई जा रही हैं. इतनी ही नहीं, दिल्ली पुलिस के पास प्रधानमंत्री राहत कोष की नकली आईडी बनाकर ठगी करने का केस भी सामने आया है जिसमें आरोपियों की तलाश जारी है. 

साइबर फ्रॉड से बचने के लिए इन बातों का ख्याल रखा जा सकता है.
- पीएम केयर या अन्य किसी कोष में दान के लिए सरकार की वेबसाइट का इस्तेमाल करें. वेबसाइट के डोमेन को अच्छे से चैक कर लें और मिलते-जुलते नामों से सावधान रहें.
- फंड ट्रांसफर करने से पहले जिसे पैसा देना है, उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें.
- किसी भी ई-कॉमर्स साइट या किसी भी वेबसाइट पर अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड की डिटेल कभी सेव न करें.
- कोरोना के नाम पर आए किसी भी अनजाने ई-मेल पर अपना सेंसेटिव इंफॉर्मेशन नहीं शेयर करें. इस समय फेक इमेल्स के माध्यम से साइबर फ्रॉड पनप रहा है.
- कोरोना वायरस से संबंधित किसी भी खबर पर क्लिक करने से पहले उसकी सत्यता की जांच अवश्य करें. अनजानी वेबसाइटों से बचने में ही भलाई है.
- हमेशा अपने विश्वसनीय स्रोत से तथ्य साझा करें. अगर कोई फोन करके आपकी डिटेल मांगे तो बिल्कुल न दें. 
- किसी भी प्रकार की ठगी की कोशिश होने के बाद तुरंत पुलिस को सूचना दें और अपने कार्ड्स ब्लॉक करवा दें.

 

References

BARC and Nielsen: Crisis Consumption - An Insights Series Into TV, Smartphone. Please click here to access.

Reuters Institute for the Study of Journalism - Types, Sources, and Claims of COVID-19 Misinformation. Please click here to access.

PII-UNICEF - Handbook for journalists on COVID-19 Pandemic. Please click here to access.

Check Point’s Global Threat Index. Please click here to access.

Coronavirus Government Response Tracker, Blavatnik School of Government, University of Oxford, please click here to access

Indian Scientists’ Response to CoViD-19, please click here to access

Meity ministry advisory for social media platforms. Please click here to access.

https://khabar.ndtv.com/news/crime/fraud-in-the-name-of-co
ronavirus-police-cyber-cell-searching-for-miscreants-22030
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https://economictimes.indiatimes.com/wealth/save/coronavir
us-online-scams-how-to-protect-your-data-and-device/articl
eshow/74862378.cms?from=mdr

https://www.weforum.org/agenda/2020/04/indian-scientists-c
ovid19-false-infomation-coronavirus/

Image Courtesy: YourStory - yourstory.com


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