महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!

महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!

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published Published on Nov 10, 2020   modified Modified on Nov 13, 2020

बहुआयामी गरीबी मौद्रिक यानी पैसे आधारित गरीबी नहीं है बल्कि यह गैर-मौद्रिक आधारित गरीबी है, जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की चुनौतियों से दृढ़ता से जुड़ी है. हालाँकि पहले गरीबी को केवल मौद्रिक यानी धन आधारित गरीबी के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया था, लेकिन अब गरीबी को लोगों के अनुभवों की जीवंत वास्तविकता और उनके द्वारा भोगे जाने वाले अनेकों अभावों से जोड़कर देखा जाता है.

इस वर्ष ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्युमन डेवल्पमेंट इनीसिएटिव (OPHI) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी की गई ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, भारत का बहुआयामी हेडकाउंट अनुपात (एच) यानी (किसी दी गई आबादी के भीतर) उन लोगों का अनुपात, जो कई तरह के अभावों के बीच गुजर-बसर करते हैं, पिछले 10 वर्षों के दौरान यानी 2005-06 और 2015-16 के बीच 55.1 प्रतिशत से घटकर 27.9 प्रतिशत हो गया है. कृपया चार्ट -1 देखें.

2005-06 और 2015-16 के बीच, भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में कई तरह के अभावों का सामना करने वाले गरीब लोगों की कुल संख्या 64.25 करोड़ से घटकर 36.96 करोड़ रह गई है, यानी पिछले एक दशक में 27.3 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए हैं. हालांकि, इसी रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में 2015-16 से 2018 तक बहुआयामी गरीबी से पीड़ित लोगों की जनसंख्या में 79 लाख की बढ़ोतरी हुई है.

अपनी वेबसाइट पर, यूएनडीपी ने उल्लेख किया है कि "महामारी के बाद वैश्विक गरीबी के बढ़ने को मापने के लिए डेटा उपलब्ध नहीं हैं, विभिन्न परिदृश्यों पर आधारित अनुमान बताते हैं कि अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो 70 विकासशील देशों में प्रगति 3-10 वर्षों तक पिछड़ सकती है."

ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स 2020चार्टिंग पाथवेज आउट ऑफ मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी: एचिविंग द एसडीजी नामक इस रिपोर्ट में बहु-आयामी गरीब लोगों की संख्या को बहुआयामी गरीबी से पीड़ितों और जनसंख्या के आकार के गुणांक के रूप में परिकलित किया गया है.

स्रोत: ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स 2020, कृपया उपयोग करने के लिए यहां क्लिक करें

Note: Based on harmonized indicator definitions for strict comparability over time

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इस वर्ष जुलाई में जारी, यूएनडीपी और ओपीएचआई की रिपोर्ट बताती है कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई), जो बहुआयामी हेडकाउंट अनुपात (एच) और गरीबी (ए) की तीव्रता का गुणांक है, भारत का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) साल 2015-16 में 0.123 था. भारत की तुलना में, बांग्लादेश (0.104) और श्रीलंका (0.011) का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) कम था, जबकि अफगानिस्तान (0.272), म्यांमार (0.176), नेपाल (0.148) और पाकिस्तान (0.198) का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) अधिक था. बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) कम होना सामाजिक रूप से वांछनीय है क्योंकि यह बहुआयामी गरीबी में आई कमी को दर्शाता है. कृपया विवरण के लिए तालिका -1 देखें.

तालिका 1: दक्षिण एशियाई देशों में बहुआयामी गरीबी सूचकांक

स्रोत: ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल और यूएनडीपी द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई)-2020देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

नोट: D, ​​जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के डेटा को इंगित करता है, M एकाधिक संकेतक क्लस्टर सर्वेक्षणों को, और N राष्ट्रीय सर्वेक्षणों को इंगित करता है. राष्ट्रीय सर्वेक्षणों की सूची देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.

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यह गौरतलब है कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई), जो पारंपरिक आय-आधारित गरीबी उपायों के लिए एक मूल्यवान पूरक है, पहली बार मानव विकास रिपोर्ट 2010 (एचडीआर) में पेश किया गया था. एमपीआई-MPI वंचितों की संख्या और उनके अभावों की तीव्रता दोनों को दर्शाता है.

बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे लोगों के अभावों का औसत यानी गरीबी की तीव्रता (Intensity of poverty), साल 2005-06 और 2015-16 के बीच 51.3 प्रतिशत से घटकर 43.9 प्रतिशत हो गई है.

मल्टीडायमेंशनल हेडकाउंट अनुपात (H) और गरीबी की तीव्रता (A) से तैयार होने वाला बहुआयामी गरीबी सूचकांक (मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स-MPI) भारत के लिए साल 2005-06 और 2015-16 के बीच 0.283 से घटकर 0.123 हो गया है.

यह गौरतलब है कि एपीआई में 10 संकेतकों- पोषण, बाल-मृत्यु, स्कूली वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, साफ-सफाई, खाना पकाने के ईंधन, पेयजल, बिजली, आवास तथा संपदा की उपलब्धता का आकलन किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति इन 10 संकेतकों में से कम से कम तिहाई संकेतकों पर वंचित पाया जाता है तो उसे बहुआयामी गरीबी का शिकार व्यक्ति माना जाता है. MPI के बारे में और इसकी गणना कैसे की जाती है, इसके बारे में जानने के लिए और तकनीकी नोटों का उपयोग करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

राज्यों / केन्द्रशासित प्रदेशों में बहुआयामी गरीबी

तालिका -2 से यह देखा जा सकता है कि 2015-16 में गैर-मौद्रिक गरीबी से प्रभावित लोगों के अनुपात के मामले में शीर्ष पांच राज्य / केन्द्रशासित प्रदेश बिहार (52.5 प्रतिशत), झारखंड (46.5 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (41.1 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (40.8 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (36.8 प्रतिशत) थे. गैर-मौद्रिक गरीबी से प्रभावित लोगों के अनुपात के मामले में सबसे कमतर पांच राज्य / केंद्रशासित प्रदेश केरल (1.1 प्रतिशत), दिल्ली (4.3 प्रतिशत), सिक्किम (4.9 प्रतिशत), गोवा (5.5 प्रतिशत) और पंजाब (6.1 प्रतिशत) थे.

2005-06 और 2015-16 के बीच बहुआयामी हेडकाउंट अनुपात (एच) में सबसे अधिक गिरावट अरुणाचल प्रदेश (35.6 प्रतिशत अंक) के लिए नोट की गई है, इसके बाद त्रिपुरा (34.3 प्रतिशत अंक), आंध्र प्रदेश (33.6 प्रतिशत अंक), नागालैंड (33.3 प्रतिशत अंक) और छत्तीसगढ़ (33.2 प्रतिशत अंक) थे.

2015-16 में, गैर-मौद्रिक गरीबी से प्रभावित लोगों की संख्या के मामले में शीर्ष पांच राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश उत्तर प्रदेश (8.47 करोड़ ), बिहार (6.18 करोड़), मध्य प्रदेश (3.56 करोड़), पश्चिम बंगाल (2.62 करोड़) और राजस्थान (2.36 करोड़) थे. गैर-मौद्रिक गरीबी से प्रभावित लोगों की संख्या के मामले में निचले पांच राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में सिक्किम (27,000), गोवा (89,000), मिजोरम (1.10 लाख), अरुणाचल प्रदेश (2.76 लाख) और नागालैंड (3.77 लाख) थे.

तालिका 2: राज्यों / केन्द्रशासित प्रदेशों में बहुआयामी गरीबी

स्रोत: ग्लोबल एमपीआई डेटा टेबल 2020, एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें

Note: Based on harmonized indicator definitions for strict comparability over time

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शाब्दिक आंकड़ों के हिसाब से, 2005-06 और 2015-16 के बीच बहुआयामी गरीबी से प्रभावित लोगों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट उत्तर प्रदेश (लगभग 4.6 करोड़) में दर्ज की गई है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (2.75 करोड़), पश्चिम बंगाल (2.72 करोड), महाराष्ट्र (2.12 करोड़) और कर्नाटक (लगभग 2 करोड़) हैं.

2015-16 में, गरीबी की तीव्रता के मामले में शीर्ष पांच राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश बिहार (47.2 प्रतिशत), राजस्थान (45.3 प्रतिशत), मिजोरम (45.2 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश, झारखंड और असम (प्रत्येक 44.7 प्रतिशत) और मेघालय (44.5 प्रतिशत) थे. गरीबी की तीव्रता के मामले में सबसे नीचे के पांच राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश गोवा (37.2 प्रतिशत), केरल (37.3 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (37.4 प्रतिशत), तमिलनाडु (37.5 प्रतिशत) और सिक्किम (38.1 प्रतिशत) थे.

2015-16 में, बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के संदर्भ में शीर्ष पांच राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश बिहार (MPI = 0.248), झारखंड (MPI = 0.208), उत्तर प्रदेश (MPI = 0.183), मध्य प्रदेश (MPI = 0.182) और असम (MPI=0.162) थे. बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के संदर्भ में सबसे नीचे से पांच राज्य / केंद्र शासित प्रदेश केरल (MPI = 0.004), दिल्ली (MPI = 0.018), सिक्किम (MPI = 0.019), गोवा (MPI = 0.020) और पंजाब (MPI = 0.025) थे.

बहु-आयामी गरीबी में ग्रामीण-शहरी द्वंद्ववाद

2005-06 और 2015-16 दोनों में ग्रामीण क्षेत्रों की बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) वेल्यू शहरी क्षेत्रों की एमपीआई वेल्यू से अधिक थी. 2015-16 में ग्रामीण क्षेत्रों में बहुआयामी हेडकाउंट अनुपात 36.8 प्रतिशत था, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 9.2 प्रतिशत था. 2015-16 के दौरान बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे लोगों के अभावों का औसत यानी गरीबी की तीव्रता (Intensity of poverty) शहरी क्षेत्रों में 42.6 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 44.1 प्रतिशत था. कृपया तालिका -3 देखें.

तालिका 3: ग्रामीण और शहरी भारत में बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई)

स्रोत: ग्लोबल एमपीआई डेटा टेबल 2020, एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

Note: Based on harmonized indicator definitions for strict comparability over time

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ग्रामीण भारत में, बहुआयामी हेडकाउंट अनुपात पिछले 10 वर्षों के दौरान यानी 2005-06 और 2015-16 के बीच 68.1 प्रतिशत से घटकर 36.8 प्रतिशत हो गया है. शहरी भारत में, 2005-06 और 2015-16 के बीच 25.0 प्रतिशत से घटकर 9.2 प्रतिशत तक रह गया है.

ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-मौद्रिक गरीबी से प्रभावित लोगों की कुल संख्या लगभग 40 प्रतिशत कम हो गई है यानी 2005-06 के 55.04 करोड़ से घटकर 2015-16 में 32.87 करोड़ रह गई है. इसी तरह, शहरी क्षेत्रों में, बहुआयामी गरीबी से प्रभावित लोगों की कुल संख्या 55 प्रतिशत तक कम हुई है, यानी समान समय अवधि में 8.72 करोड़ से कम होकर 3.91 करोड़ हो गई है.

2005-06 और 2015-16 के बीच ग्रामीण भारत में गरीबी की तीव्रता 52.0 प्रतिशत से घटकर 44.1 प्रतिशत हो गई है. 2005-06 और 2015-16 के बीच शहरी क्षेत्रों में गरीबी की तीव्रता 46.8 प्रतिशत से गिरकर 42.6 प्रतिशत हो गई है.

ग्रामीण क्षेत्रों में देश का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2005-06 और 2015-16 के बीच 0.355 से घटकर 0.163 रह गया है. इसके अलावा, 10 वर्षों के दौरान शहरी क्षेत्रों में यह 0.117 से घटकर 0.039 हो गया है.

गरीबी हैडकाउंट अनुपात

चार्ट -2 वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के हेडकाउंट अनुपात और मौद्रिक गरीबी उपायों की तुलना करता है. चार्ट -2 के पहली बार की ऊंचाई उन लोगों के अनुपात को दर्शाती है जो बहुआयामी गरीबी से पीड़ित हैं. दूसरी और तीसरी बार उन लोगों के प्रतिशत को दर्शाती हैं जो विश्व बैंक की $ 1.90 प्रति दिन और $ 3.10 एक दिन की गरीबी रेखा के अनुसार गरीब हैं. अंतिम बार उन लोगों के प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है जो राष्ट्रीय आय या उपभोग और व्यय गरीबी उपायों के अनुसार गरीब हैं.

चार्ट -2: गरीबी उपायों के अनुसार हेडकाउंट अनुपात

स्रोत: ग्लोबल एमपीआई कंट्री ब्रीफिंग 2020: भारत (दक्षिण एशिया), एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

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चार्ट -2 से यह स्पष्ट है कि मौद्रिक गरीबी के मुकाबले भारतीयों का एक उच्च अनुपात बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त है जोकि राष्ट्रीय स्तर पर मापा जाता है.

ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स 2020चार्टिंग पाथवेज आउट ऑफ मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी: एचिविंग द एसडीजी (जुलाई 2020 में जारी) नामक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

चार देशों- अर्मेनिया (20102015/2016), भारत (2005/2006 2015/2016), निकारागुआ (20012011/2012) और नार्थ मैसेडोनिया (2005/2006--2014) ने 5.5-10.5 वर्षों में ही अपने वैश्विक MPI-T वेल्यू को आधा कर दिया (अर्थात बहुआयामी गरीबी सूचकांक, समय के साथ सख्त तुलना के लिए सामंजस्यपूर्ण संकेतक परिभाषाओं पर आधारित है). ये देश दिखाते हैं कि बहुत भिन्न गरीबी स्तर वाले देशों में भी यह संभव है. भारत की बड़ी आबादी के कारण ये देश दुनिया की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा हैं.

भारत और निकारागुआ की समय अवधि क्रमशः 10 और 10.5 वर्ष है, और उस समय के दौरान दोनों देशों ने बच्चों से संबंधित अपनी एमपीआई-टी वेल्यू को आधा कर दिया. इसलिए बच्चों के लिए निर्णायक बदलाव संभव है लेकिन इसके लिए सचेत नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है.

अपने MPI-T वेल्यू को कम करने वाले 65 देशों में से 50 ने गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या को भी कम कर दिया. सबसे बड़ी गिरावट भारत में देखी गई, जहां लगभग 27.3 करोड़ लोग 10 वर्षों में बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले. चीन में चार वर्षों में 7 करोड़ से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले, और बांग्लादेश में 1.9 करोड़ लोगों और इंडोनेशिया में लगभग 80 लाख लोग पांच वर्षों में गरीबी से बाहर निकले. पाकिस्तान में लगभग 40 लाख लोग पाँच वर्षों में गरीबी से बाहर निकले. कुछ छोटे देशों ने भी उल्लेखनीय गिरावट हासिल की: पांच वर्षों में नेपाल में लगभग 40 लाख और केन्या में 30 लाख लोगों से अधिक लोग गरीबी के चंगुल से मुक्त हुए.

तीन दक्षिण एशियाई देश (बांग्लादेश, भारत और नेपाल) अपने एमपीआई-टी वेल्यू को कम करने के लिए 16 सबसे तेज देशों में से एक थे.

दस देशों में टीकाकरण से वंचित 60 प्रतिशत बच्चों की संख्या है, और डीटीपी 3 के टीकाकरण से वंचित 40 प्रतिशत बच्चे सिर्फ चार देशों में रहते हैं: नाइजीरिया, भारत, पाकिस्तान और इंडोनेशिया. टीकाकरण की 89 प्रतिशत कवरेज दर के बावजूद भी भारत में 26 लाख बच्चे पूरी तरह से टीकाकरण से वंचित हैं, यह आंकड़ा दिखाता है कि उच्च टीकाकरण कवरेज होने के बावजूद भी आबादी वाले विकासशील देशों में टीकाकरण से वंचित बच्चों की संख्या कितनी अधिक है.

चीन और भारत में द्रवीभूत पेट्रोलियम गैस कार्यक्रमों और स्वच्छ वायु नीतियों के परिणामस्वरूप 2010 से अब तक 45 करोड़ से अधिक लोग स्वच्छ खाना पकाने वाले ईंधन के दायरे में आए हैं. लेकिन उप-सहारा अफ्रीका में चुनौती बरकरार है, जहां ग्रामीण क्षेत्रों में 46.3 करोड़ लोग गरीब हैं और खाना पकाने के ईंधन में वंचित हैं.

 

References

Global Multidimensional Poverty Index 2020 -- Charting pathways out of multidimensional poverty: Achieving the SDGs, United Nations Development Programme (UNDP) and Oxford Poverty and Human Development Initiative (OPHI), please click here to read more

Global MPI Country Briefing 2020: India (South Asia), please click here to access

MPI 2020 Technical Notes, UNDP and OPHI, please click here to access

News alert: Country's non-income-based poverty level has fallen over the past 10 years, shows new report, Published on Oct 30, 2018, Inclusive Media for Change, please click here to access

 

Image Courtesy: Himanshu Joshi



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