अर्थातः बचेगा डिजिटल इंडिया?

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published Published on Mar 3, 2020   modified Modified on Mar 3, 2020

लड़खड़ाते मोबाइल नेटवर्क, घिसटते इंटरनेट और बढ़ते बिल के बीच टेलीकॉम बाजार को करीब से देखिए, आपको डिजिटल इंडिया हांफता नजर आएगा. वह उम्मीद छीजती दिखेगी जिसकी ताकत पर अर्थव्यवस्था को अगली छलांग लगानी है. सरकार ने वही किया है जो अब तक करती आई है, उसकी नीतियों ने फलते-फूलते प्रतिस्पर्धी दूरसंचार बाजार का गला दबा दिया है.

ई कॉमर्स, ई गवर्नेंस, सबको मोबाइल, ई क्रांति (सेवाओं की इलेक्ट्राॅनिक डि‌िलवरी), डिजिटल बैंकिंग, ब्रॉडबैंड हाइवे, पब्लिक इंटरनेट एक्सेस, इलेक्ट्राॅनिक्स मैन्युफैक्चरिंग, ओपन डेटा एक्सेस की उम्मीदों से गुनी-बुंथी डिजिटल अर्थव्यवस्था को अगले पांच साल में देश की जीडीपी में एक ट्रिलियन डॉलर (सूचना तकनीक मंत्रालय की रिपोर्ट 2019) जोड़ने थे. यानी कि जीडीपी के (महंगाई सहित) करीब 18 से 23 फीसद के बराबर बढ़ोतरी होनी थी. लेकिन यह करिश्मा करने के लिए देश को चाहिएः

• हाइ स्पीड 4 जी मोबाइल नेटवर्क न कि हर सेकंड पर कॉल ड्राॅप

• मोबाइल बैंकिंग व सरकारी सेवाओं के लिए सर्व सुलभ हाइ स्पीड, ऑप्टिक फाइबर आधारित ब्रॉडबैंड इंटरनेट

• सस्ती दूरसंचार सेवा और प्रतिस्पर्धा ताकि नई तकनीकें आती रहें

• साइबर सुरक्षा का अचूक ढांचा

लेकिन अब दूरसंचार क्षेत्र में जो हो रहा है, वह डिजिटल इंडिया के लिए भयावह होने वाला है. 2015 में जब, सरकार डिजिटल इंडिया का बिगुल बजाना शुरू कर रही थी ठीक उसी समय दूरसंचार कंपनियों को महंगा स्पेक्ट्रम बेचा जा रहा था. यह महंगी चूक उस 2जी घोटाले से निकली थी, 2017 में जिसे अदालत ने घोटाला मानने से ही इनकार कर दिया. सरकार ने ऊंची अदालत में अपील नहीं की और दूरसंचार क्रांति को नेस्तोनाबूद कर देने वाला प्रकरण इतिहास में खो गया.


मार्च 2018 में रिलायंस जिओ ने बाजार में प्रतिस्पर्धा रोक दी और ऊंची कीमत पर स्पेक्ट्रम खरीदने वाली टेलीकॉम कंपनियां 7.7 लाख करोड़ रु. के कर्ज में दब गईं. नतीजतन, सरकार ने तय किया कि इस स्पेक्ट्रम फीस की वसूली अब 10 की जगह 16 साल में होगी.

वह 2018 की मार्च वाली तिमाही थी जब एयरटेल को 15 साल में पहली बार घाटा हुआ, आइडिया वोडाफोन का साझा घाटा तीन गुना बढ़ गया और जिओ के राजस्व में बढोतरी थमनी शुरू हुई. सरकार की आंखों के सामने भारत की सबसे चमकदार क्रांति का शोकांत शुरू हो चुका था. डिजिटल इंडिया की जमीन हिलने लगी थी लेकिन ठीक इसी दौरान सरकार ने लाइसेंस फीस के नए फॉर्मूले को लागू करने की पैरवी तेज कर दी.

इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कंपनियों पर 1.43 लाख करोड़ रु. की देनदारी (पुराना बकाया यानी एजीआर) निकली है जिससे बैंक भी बेहोश हुए जा रहे हैं. अकेले स्टेट बैंक ने टेलीकॉम कंपनियों को 43,000 करोड़ रु. का कर्ज दे रखा है.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


अंशुमन तिवारी, https://aajtak.intoday.in/story/will-digital-india-survive-1-1168430.html


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