आदिवासी बच्चों के लिए खुले एकलव्य स्कूलों की स्थिति बदहाल, कई राज्यों में शुरू भी नहीं हुए

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published Published on May 3, 2019   modified Modified on May 3, 2019
नई दिल्ली: सबका साथ, सबका विकास... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का ये मूलमंत्र रहा है. लेकिन, क्या सचमुच ऐसा हुआ? मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं का विश्लेषण किया जाए तो यही पता चलता है कि नारों के शोर में विकास कहीं गुम हो गया है.

मसलन, इस एक खबर पर पहले नजर डालिए. इकोनॉमिक टाइम्स में 18 अप्रैल 2016 को प्रकाशित एक लेख में बताया गया कि देश भर के राजकीय आवासीय स्कूलों में 882 आदिवासी बच्चों की मौत हो गई. इस खबर के मायने क्या है?

इस खबर का एक महत्वपूर्ण अर्थ ये है कि विकास के पायदान पर सबसे पिछड़ा वर्ग, आदिवासी, सदियों से उत्पीड़न, धोखा, दगाबाजी का शिकार होता रहा है.

ये अलग बात है कि आदिवासियों के नाम पर अरबों रुपये की योजना बनाई जाती रही है, लेकिन उसका फायदा शायद ही कभी ग्राउंड लेवल तक पहुंचा हो. इसका एक शानदार उदाहरण है एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय.

यह केंद्र सरकार की योजना है. आइए, जानते हैं कि इस योजना के तहत पिछले पांच सालों में क्या-क्या हुआ, ताकि आप समझ सकें कि सबका साथ, सबका विकास जैसे नारों का असल मतलब इस देश के लिए और इस देश की राजनीति के लिए क्या है?

द वायर हिन्दी पर प्रकाशित इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


http://thewirehindi.com/80348/modi-govt-rti-eklavya-model-residential-school-tribal-children/


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