Resource centre on India's rural distress
 
 

आप की थाली में पोषण कम है, क्योंकि अनाज उगाने वाले खेत ही बेदम हैं...

अगर आप अपने पिछले कुछ वर्षों के डॉक्टरों के पर्चे पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि वे दवाओं के साथ विटामिन, जिंक वाली टैबलेट-कैप्सूल भी लिखते हैं, क्योंकि आप जो खाना (शाकाहारी-मांसाहारी) खाते हैं, उसमें ही पोषक तत्व कम हो गए हैं। अनाज में पोषक तत्व कम इसलिए हो गए हैं क्योंकि मिट्टी बेदम हो गई है। इसी कुपोषित मिट्टी में उगी फसल खाकर भारत के लोग पेट तो भर रहे हैं, लेकिन कुपोषित भी हो रहे हैं। "कुपोषण के लिए मिट्टी सीधे तौर पर जिम्मेदार है। पोषण रहित मिट्टी में उगने वाले फल, फूल और अनाज में निश्चित पोषक तत्वों की कमी होगी। यही हाल मांसाहार खाने वालों का है, बकरी हो या दूसरे पशु खाते तो मिट्टी में उगी चीजें हैं, तो उनमें भी डेफिशियेंसी (कमी) पाई जाती है। इसीलिए मेडिकल रिपोर्ट में आयरन, विटामिन, जिंक और दूसरे पोषक तत्वों की कमी होती है, जिसे पूरा करने के लिए डॉक्टर दवाएं लिखते हैं।"डॉ. विनय मिश्रा, निदेशक, केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान,लखनऊ कहते हैं। यह सरकारी संस्थान देश में मिट्टी पर शोध और सुधार के लिए जाना जाता है।

कुपोषण भारत के साथ ही दुनिया के लिए गंभीर समस्या है। भुखमरी और कुपोषण पर आई 'स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड, 2017' के मुताबिक दुनिया भर में कुपोषित लोगों की संख्या 2015 में करीब 78 करोड़ थी तो 2016 में यह बढ़कर साढ़े 81 करोड़ हो गई। दुनिया के कुपोषित लोगों में से 19 करोड़ लोग भारत में रहते हैं। यानि की कुल आबादी के करीब 14 फीसदी लोग कुपोषण से जूझ रहे हैं। चिंताजनक ये है कि भारत में 0-5 साल तक के 38 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। भरपूर पोषक तत्व न मिलने का असर न सिर्फ उनके शारीरिक विकास पर पड़ता है, बल्कि मानसिक और पढ़ाई-लिखाई पर साफ नजर आता है। कुपोषण के कलंक से निपटने के लिए सरकार ने 2018 में तीन साल के लिए 9046.17 करोड़ रुपए से पोषण मिशन शुरुआत की है। सितंबर 2018 को पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है। देश के कई मंत्रालय, विभाग और संस्थाएं इसमें शामिल हैं, लेकिन कृषि नहीं है, जबकि कुपोषण का सीधा वास्ता खेत से है।

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