Resource centre on India's rural distress
 
 

झारखंड: 9 साल में वज्रपात से 1568 लोगों की मौत

रांची : झारखंड में पिछले नौ साल में वज्रपात से 1568 लोगों की मौत हुई है. आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों पर गौर करें, तो वित्तीय वर्ष 2016-17 में मौत की संख्या 265 तक पहुंची है. प्रदेश में वज्रपात को राज्य सरकार ने विशिष्ट आपदा घोषित कर रखा है. पीड़ितों के लिए मुआवजे का प्रावधान भी है.

लेकिन वज्रपात से बचाव और समय पर लोगों को सूचना देने का तंत्र अब भी नाकाफी है. राज्य बनने के 19 साल होने को है, लेकिन अभी तक मौसम की सटीक सूचना एकत्र करने के लिए डॉपलर रडार तक स्थापित नहीं किया गया है. हालांकि विभागीय अधिकारी बताते हैं कि डॉपलर रडार लगाने की कवायद तेज कर दी गयी है. वज्रपात मई से जून और सितंबर से नवंबर में अधिक होता है. जानकारों के अनुसार वज्रपात पूर्वाहन की तुलना में अपराह्न में ज्यादा होता है. इसके लिए गर्म हवा में आर्द्रता एवं अस्थिर वायुमंडलीय अवस्था वैसे बादलों के बनने में सहायक है जिससे वज्रपात की संभावना रहती है.

जानकार बताते हैं कि वज्रपात के लिहाज से झारखंड काफी संवेदनशील है. यहां पर वज्रपात की घटनाएं समतली इलाकों की तुलना में अधिक होती है. समुद्र तल से झारखंड के अधिक ऊंचाई पर होने व पठारी और जंगली क्षेत्रों में विशेषकर जहां जमीन की ऊंचाई में अचानक अंतर आता है. बादल के वाष्प कण आपस में टकरा कर अत्यधिक ऊर्जा का सृजन करते हैं, जो कि खनिज भूमि की ओर आकर्षित होकर वज्रपात का रूप धारण कर लेते हैं. छोटी पहाड़ियां, लंबे पेड़, जंगल, दलदली क्षेत्र, ऊंचे टावर और बड़ी इमारतें वज्रपात के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील होते हैं.

देश में हर साल 2182 लोग होते है वज्रपात के शिकार

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक देश में हर साल 2,182 लोग वज्रपात के शिकार होते है. 2016 में 120, 2014 में 2,582 और 2013 में 2,833 लोग वज्रपात से मारे जा चुके है.

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