मॉनसून के ठिठकने का नुकसान-- हिमांशु ठक्कर |
केरल से चले मॉनसून पर मध्य भारत पहुंचते ही ब्रेक लग गया है और बीते 13 जून से वह आगे ही नहीं बढ़ पाया है. माना जा रहा है कि पिछले आठ साल में यह पहली बार है, जब मॉनसून कहीं ठिठक गया हो. लेकिन, पिछले साल भी थोड़े समय के लिए ऐसा हुआ था. अब तक तो पूरे मध्य भारत में मॉनसून पहुंच जाना चाहिए था, लेकिन अब इसके पहुंचने में देरी हो रही है. इस देरी का असर बारिश में कमी के रूप में हमारे सामने है. 14 से 20 जून वाले सप्ताह में देश में जो बारिश हुई है, वह सामान्य से तकरीबन 39 प्रतिशत कम है. बारिश की इस कमी का असर सबसे पहले खेती पर ही पड़ता है, क्योंकि इसी दौरान देश के कई क्षेत्रों में (उत्तर-पश्चिम भारत को छोड़कर) पहली बारिश के आते ही बुवाई हो जाती है. जहां खेतों में बुवाई हो जानी चाहिए थी, वहां अब भी बारिश का इंतजार हो रहा है. बुवाई में देरी से फसलों पर असर पड़ना तय है और ऐसे में खाद्यान्न के सामान्य उत्पादन के कुछ कम होने की पूरी संभावना रहती है.
मॉनसून के ठिठकने के बाद जब वह फिर से चलेगा, तब इस बात की संभावना ज्यादा रहती है कि कुछ इलाकों में खूब बारिश हो. जैसे एक बार की बात है कि देरी के बाद जब मॉनसून आया, तो पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर और असम में इतनी बारिश हुई कि बाढ़ आ गयी. केरल और तमिलनाडु में भी खूब बारिश हुई और एक जगह भू-स्खलन भी हुआ, जिसमें कई लोग अपनी जान गंवा बैठे. कहने का तात्पर्य यह है कि मॉनसून की देरी के चलते कहीं-कहीं ज्यादा बारिश की स्थिति में ऐसे हादसे होने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए जरूरी है कि हम अपनी तैयारी पूरी रखें और तमाम संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त सतर्कता के साथ जरूरी तैयारियां कर लें. हालांकि, ऐसी महज संभावना ही है, क्योंकि उम्मीद यह भी है कि मॉनसून चलेगा, तो पूरे देश में अच्छी बारिश होगी और यह हो सकता है कि खेती का ज्यादा नुकसान न हो. मॉनसून की देरी और उससे उपजी कुछ असामान्य परिस्थितियों के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पर कुछ असर तो पड़ेगा, जाहिर है, लेकिन वह असर कितना और कैसा होगा, इसका सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता. सटीक अनुमान इसलिए नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि पहले तो बुवाई का सही समय गुजर गया है, वहीं दूसरी बात कि या तो ठीक-ठाक बारिश से फसल संभल जाये या अगर अचानक खूब बारिश आकर कुछ क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति पैदा कर दे, तो यह अब समय के गर्भ में ही होगा कि कृषि उत्पादन का कितना नुकसान होगा और इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा. वर्तमान में जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के दौर से हम गुजर रहे हैं, उसमें मौसम वैज्ञानिक यही बताते हैं कि मॉनसून में गड़बड़ी की स्थिति में बारिश को जब आना होता है तब नहीं आती है और जब बारिश होती है, तो इतनी होती है कि बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाये. दरअसल, मॉनसून का एक प्रकार से बहुत कंप्लीकेटेड डायनामिक्स (जटिल गतिशीलता) है, जिसे बड़ी आसानी से नहीं समझा जा सकता और हमारा विज्ञान भी अभी उसको पूरी तरह से समझ नहीं पाया है. यही वजह है कि मौसम विज्ञान का अनुमान कई बार गलत साबित हो जाता है. दरअसल, मॉनसून की जटिलता के पीछे बहुत सारे कारक काम करते हैं और सही कारक का पता चल पाना भी कुछ मुश्किल होता है. हर साल अपनी रपटों में मौसम वैज्ञानिक यह बात कहते आ रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण मानव निर्मित है. और इसके चलते मौसम में जो बदलाव आयेंगे, उनमें से एक तो यही है कि जब बारिश का समय होता है, तब बारिश नहीं होती. और जब होती है, तो एक साथ बहुत सारा पानी बरस जाता है. जाहिर है, इसका सीधा असर तो खेती पर पड़ेगा ही. मॉनसून समय से आने और जरूरत के हिसाब से अच्छी बारिश होने के बेशुमार फायदे तो हैं, लेकिन हमने पिछले कुछ सालों में अपनी जमीन की ऐसी स्थिति बना दी है कि ये फायदे अब मिलने से रहे. दरअसल, पहले बारिश के पानी के भंडारण की अच्छी व्यवस्था हुआ करती थी, जगह-जगह बावड़ी और पोखर-तालाब हुआ करते थे, लेकिन अब वे सब या तो भर गये हैं या छिछले हो गये हैं, जिससे पानी कहीं ठहर नहीं पाता है. और मॉनसून की गड़बड़ी के चलते अचानक तेज बारिश का तो नुकसान यह है कि इतना सारा पानी कहीं ठहर ही नहीं पायेगा. छोटे-छोटे तालाबों का खत्म होना बहुत नुकसानदायक साबित हुआ है. छोटे तालाबों का फायदा यह होता था कि जब बारिश आती थी, तो वे भर जाते थे और उसके बाद सप्ताह-दस दिन भी बारिश नहीं आयी, तो भी कोई दिक्कत नहीं हाेती थी और भूमिगत जलस्तर भी बरकरार रहता था. लेकिन, अब न तो पोखर और तालाब बचे हैं और न ही भूमिगत जलस्तर बरकरार रह पाता है. नतीजा, बाढ़ की तबाही के बाद सूखा आ धमकता है. कुल मिलाकर देखें, तो मॉनसून में देरी से उपजी परिस्थितियों का अध्ययन कर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जल भंडारण का विकेंद्रीकरण हो यानी देशभर में छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण हो, ताकि पानी का भंडारण हो सके. तभी संभव है कि हम अपनी कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों को समृद्ध बना सकेंगे. |