किसान और आत्महत्या

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मुजफ्फर असदी द्वारा प्रस्तुत फार्मस् स्यूसाइड इन इंडिया - एग्ररेरियन क्राइसिस, पाथ ऑव डेवलपमेंट एंड पॉलिटिक्स इन कर्नाटक नामक अध्ययन के अनुसार-

http://viacampesina.net/downloads/PDF/Farmers_suicide_in_india(3).pdf:

 
• खेतिहर संकट की शुरुआत साल १९८० के दशक में हो चुकी थी। किसानों की आत्महत्या की शुरुआत पर ध्यान देना ठीक है लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरुरी है खेतिहर संकट की शुरुआत पर ध्यान देना। साल १९८० के दशक में टर्मस् ऑव ट्रेड खेती के खिलाफ जाने शुरु हुए। महाराष्ट्र में शेतकारी संगठन तमिलनाडु में व्यावसायीगल संघम् और कर्नाटक में राज्य रैयत संघ राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही नीतियों का इस अवधि में विरोध कर रहे थे।

 
• गंभीर से गंभीर खेतिहर संकट की दशामें भी कर्नाटक में किसानों के आत्महत्या करने का कोई इतिहास नहीं मिलता. कर्नाटक में यह प्रवृति आंध्रप्रदेश से आयी। कर्नाटक में किसी किसान की आत्महत्या की पहली खबर उत्तरी इलाके से आयी। यह इलाका आंध्रप्रदेश की सीमा के निकट है।

 
• कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या की शुरुआती खबरें साल १९९८ में आईं। इस साल बीदर जिले के दो किसानों ने आत्महत्या की। ये किसान अरहर की खेती करते थे जो एक तरह से नकदी प्ररित खेती है।१९९८ के बाद के दो सालो में उत्तरी कर्नाटक के बीदर और गुलबर्गा इलाके से आत्महत्या की खबरें आयी। यह इलाका सूखा आशंकित कहलाता है और पिछड़ा भी है।.साल २००० के बाद अपेक्षाकृत समृद्ध इलाकों मसलन, माड्या, हासन, शिमोगा, दावणगेरे और चिकमंगलूर तक में किसानों आत्महत्या करने लगे। किसानों की आत्महत्या घटनायें भरपूर पानी की धरती बेलगाम और भरपूर सिचाई सुविधा संपन्न मांडया जिले से भी आईं। तटीय इलाके में कहीं कम किसानों ने आत्महत्या की।

 
• अनुमानतया साल १९९९-२००१ के बीच कर्नाटक में ११० किसानों ने आत्महत्या की। एक अनुमान के अनुसार साल १९९८ से साल २००६ के बीच कर्नाटक में ३००० किसानों ने आत्महत्या की। कर्नाटक के क्राइम ब्रांच द्वारा उपलब्ध करवाये गए तथ्यों के अनुसार साल १९९८ से २००२ के बीच कुल १५८०४ किसानों ने आत्महत्या की।साल १९९६ से २००२ के बीच कर्नाटक में कुल १२८८९ पुरुष और २८११ महिला किसानों ने आत्महत्या की। १ अप्रैल २००३ से १ जनवरी २००७ तक कर्नाटक में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या ११९३ रही।

 
• जिन किसानों ने आत्महत्या की उन सभी पर कर्ज का बोझ एकसमान नहीं था। किसी के ऊपर ५००० रुपये का कर्जा था तो किसी के ऊपर ५०००० रुपये का। अधिकतर किसानों ने छोटी अवधि के लिए कर्ज लिए थे। .

 
• किसानों की आत्महत्या का एक दुखद पहलू यह भी है कि ऐसे ज्यादातर किसान २५-३५ आयु वर्ग के थे।

 
• २१ वीं सदी के शुरुआती सालों में कर्नाटक में खेती की बढ़ोतरी दर नकारात्मक रही। इससे जुड़ा एक तथ्य है- साल १९९५-९६ से २००२-०३ के बीच विभिन्न क्षेत्रों की औसत जीडीपी दर ५.८६ रही जबकि खेती की १.८७। इस अवधि में उद्योगों के लिए यह आंकड़ा ५.९३ फीसदी का और सेवा क्षेत्र के लिए ८.१८ फीसदी का रहा।

 
• कर्नाटक में आत्महत्या करने वाले किसानों में ज्यादातर ओबीसी समूह के थे। बहरहाल, अगड़ी जातियों(लिंगायत और वोक्कालिंगा के )किसानों ने भी आत्महत्या की।

 
• कर्नाटक सरकार ने विश्वबैंक से जो कर्ज लिया वह किसानों के हित के विपरीत गया। इस कर्ज के कारण साल २००१ में आर्थिक पुनर्रचना की गई। बैंक ने कर्ज इस शर्त पर दी की सरकार बिजली के मामले में ना तो नियामक की भूमिका निभायेगी और ना ही वितरक की। बिजली की कीमतें अचानक बढ़ गईं।

 
• कर्नाटक की सरकार महाजनों पर लगाम कसने में नाकाम रही। यहां सरकार सहकारिता आंदोलन को भी सफल ना बना सकी। कर्नाटक में ग्रामीण स्तर पर कुल ३२३८१ सहकारी संस्थाएं हैं। इनमें से तकरीबन ४० फीसदी घाटे में चल रही हैं जबकि २० फीसदी अब खत्म हो गईं हैं अथवा उनमें कोई कामकाज नहीं होता।

 
• कर्नाटक सरकार बीटी कॉटन के फील्ड ट्रायल के लिए अनुमति देने वाली कुछेक पहली सरकारों में एक है।

 
•साल 2002, 143 तालुके को सूखाग्रस्त घोषित किया गया।साल 2003, में  176 तालुके में से 159 तालुके को सूखाग्रस्त घोषित किया गया। सुखाड़ की स्थिति उत्पादन में कमी की जिम्मेदार रही क्योंकि रोपाई-बुआई का रकबा घट गया।

 

 


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