सोशल ऑडिट

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 खास बात

साल १९९३ के ७३ वें संविधान संशोधन के अनुसार सोशल ऑडिट करना अनिवार्य है। इसके माध्यम से ग्रामीण समुदाय को अधिकार दिया गया है कि वे अपने इलाके में सभी विकास कार्यों का सोशल ऑडिट करें। इस काम में अधिकारियों को ग्राम-समुदाय का सहयोग करना अनिवार्य माना गया है।*
• साल १९९२-९३ के संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय स्वशासन के अन्तर्गत व्यवस्था की गई कि ग्राम सभा और म्युनिस्पल निकायों के आगे विकास कार्यों से संबंधित बही खाते रखे जायें और जनता उनकी परीक्षा करे।**
• सोशल ऑडिट की प्रक्रिया में सरकारी एजेंसियां अपने विकास कार्यों से संबंधित ब्यौरे किसी सार्वजिनक मंच पर लोगों से साझा करती हैं। इससे जनता को ना सिर्फ विकास कार्यों की जांच का मौका मिलता है बल्कि विकास कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही भी सुनिश्चित होती है।*
• सोशल ऑडिट शब्द का पहली बार इस्तेमाल १९५० के दशक में हुआ। पिछले आठ सालों में यह शब्द भारत में खूब प्रचलित हुआ है जो इसके अन्तर्गत बढ़ती गतिविधियों की सूचना देता है।***
• नरेगा के अन्तर्गत अनुच्छेद १७(२) में कहा गया है-ग्राम सभा नरेगा के अन्तर्गत किसी ग्राम पंचायत में चल रही सारी योजनाओं का नियमित सोशल ऑडिट करेगी। फिर अनुच्छेद १७(३) में कहा गया है- ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है कि वह सभी जरुरी कागजात मसलन मस्टर रोल, बिल वाऊचर, नापी-जोखी से संबंझित दस्तावेज, पारित आदेशों की प्रतिलिपि आदि ग्राम सभा को सोशल ऑडिट के लिए मुहैया कराये।#


* विजन फाऊंडेशन(२००५)- सोशल ऑडिट- ग्राम सभा एंड पंचायत राज- योजना आयोग को प्रस्तुत दस्तावेज
**अमिताभ मुखोपाध्याय कृत सोशल ऑडिट नामक आलेख, सेमिनार
*** केजी श्रीवास्तव और चंदन दत्ता
http://www.fao.org/DOCREP/006/AD346E/ad346e09.htm 
# राजेश कुमार सिन्हा-एकाउन्टेबिलिटी इन रुरल वेज एम्पलॉयमेंट प्रोग्रामस् इन इंडिया-केस ऑव सोशल ऑडिट इन नरेगा
http://www.solutionexchange-un.net.in/decn/cr/res11020901.pdf



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