उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगले महीने चुनाव होने वाले हैं। इसी बीच एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। इन तीनों राज्यों में अचानक से मनरेगा के तहत रोजगार लेने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। एक अधिकारी के मुताबिक तीनों राज्यों में चालू वित्त वर्ष में इन आंकड़ों में बढ़ोत्तरी हुई है जो कि पिछले वित्त बर्ष में मनरेगा के तहत रोजगार पाने वालों की तुलना में अधिक है। मनरेगा भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 25 अगस्त 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया। यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है।
पंजाब में इस वर्ष दिसंबर तक चालू वित्त वर्ष में अनुमानित काम में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई। इस योजना के तहत इस साल 1.01 करोड़ लोगों के रोजगार देने का अनुमान था लेकिन अभी तक मनरेगा के तहत 1.28 करोड़ लोगों को रोजगार दिया जा चुका है। मनरेगा के तहत काम मांगने वालों में पंजाब सबसे पीछे माना जाता है। अच्छी सिंचाई, कृषि और तकनीक के चलते पंजाब में लोग सरकार की 100 दिन रोजगार वाली योजना पर निर्भर नहीं हैं। पिछले वित्त वर्ष में अप्रैल और दिसंबर 2015 के बीच पंजाब में मनरेगा के तहत 0.96 करोड़ लोगों ने काम किया था।
पंजाब के जिला स्तर के एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक, चुनावी साल में सभी जिला प्रशासन को सख्त आदेश दिए गए थे कि मनरेगा के आंकड़ों के बढ़ाया जाए। जिसके चलते इस साल मनरेगा के तहत काफी काम करवाया गया।
उत्तर प्रदेश में भी सूखा प्रभावित बुंदेलखंड में मनरेगा के तहत दिए जाने वाले काम के आंकड़े में जबरदस्त बढ़ोत्तरी देखी गई है। हालांकि इस साल मानसून सही रहने के चलते पिछले वित्त बर्ष की तुलना में चालू वित्त बर्ष में रोजगार के आंकड़ों में थोड़ी सी कमी आई है। फिर भी, पिछले वित्त वर्ष (दिसंबर से अप्रैल तक) 11 करोड़ लोगों को रोज दिया गया था। वहीं इस साल 13 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत काम दिया गया। हालांकि ये आंकड़ा तय किए टारगेट से कम था।
वहीं उत्तराखंड में भी अनुमानित काम में बढ़ोत्तरी देखी गई है। दिसंबर से अप्रैल 2016 में मनरेगा के तहत 1.62 करोड़ लोगों को रोजगार दिया गया था। जबकि पिछले साल इसी सत्र के दौरान मनरेगा के तहक 1.24 करोड़ लोगों को काम दिया गया था।
इसी तरह की बढ़ोत्तरी अप्रैल से मई के बीच 2016 में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडू और केरल में भी इसी तरह की बढ़ोत्तरी देखने को मिली थी। वहीं मनरेगा के तहत रोजगार बढ़ने का दूसरा कारण नोटबंदी भी माना जा रहा है। दिसंबर महीने में दैनिक रोजगार की मांग में 60 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है, जो कि बीते महीनों की तुलना में काफी ज्यादा है। मनरेगा के कामकाज की ऑनसाइट देखरेख करने वाले अधिकारियों का कहना है कि अचानक से आई इस तेजी की मुख्य वजह नोटबंदी है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के रिकॉर्ड्स के मुताबिक जुलाई से नवंबर 2016 तक मनरेगा में प्रतिदिन औसतन मजदूरी 30 लाख थी, जो कि दिसंबर महीने में 50 लाख प्रति दिन पर पहुंच गई। वहीं, 7 जनवरी 2017 को दैनिक रोजगार की मांग करने वाले मजदूरों की संख्या 83.60 लाख थी। यह आंकड़ा नोटबंदी की घोषणा से पहले के आंकड़े का लगभग तीन गुना अधिक है।
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