भ्रष्टाचार

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हालात 2007

ट्रान्सेपेरेन्सी इंटरनेशनल और सेंटर फार मीडिया स्टडीज द्वारा प्रस्तुत इंडिया करप्शन स्टडीज नामक दस्तावेज के अनुसार-(http://www.cmsindia.org/cms/highlights.pdf):

  • गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) लगभग एक तिहाई परिवारों ने सर्वेक्षण में शामिल ग्यारह सार्वजनिक सेवाओं में से किसी न किसी को हासिल करने के लिए गुजरे एक साल में रिश्वत दिया।यह सर्वेक्षण अखिल भारतीय स्तर पर किया गया था। इससे पता चलता है कि गरीबों के लिए कोई खास कार्यक्रम बना हो तो भी ये सुविधा उन्हें बगैर रिश्वत चुकाये हासिल नहीं होती।
  • पिछले दो सालों में सार्वजनिक सेवाओं की पहुंच को बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाये गये हैं।इसके अन्तर्गत सिटीजन चार्टर,सूचना का अधिकार अधिनियम,सोशल ऑडिट,-गवर्नेंस जैसे उपायों का नाम लिया जा सकता है। लेकिन इन उपायों का असर गरीबों तक पहुंचा हो-यह बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती है।
  • गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों में जिन लोगों ने सरकारी सेवाओं का पिछले एक साल में इस्तेमाल किया उनमें साढ़े तीन फीसदी परिवारों ने स्कूली शिक्षा के लिए और ४८ फीसदी परिवारों ने पुलिस की सहायता हासिल करने के लिए रिश्वत दिये।
  • पिछले साल (यानी २००६) में लगभग चार फीसदी बीपीएल परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुहैया कराये जाने वाले राशन, स्कूली शिक्षा और बैंकिग सेवाओं को हासिल करने के लिए किसी न किसी बिचौलिये का सहारा लेना पड़ा जबकि आवास की सेवा-सुविधा अथवा जमीन के कागजात निकालने के लिए या उसका पंजीकरण करवाने के लिए १० फीसदी बीपीएल परिवारों को बिचौलिये का सहारा लेना पड़ा।
  • लगभग दो फीसदी बीपीएल परिवार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुहैया कराये जाने वाले राशन,स्कूली शिक्षा अथवा बिजली आपूर्ति की सेवा का लाभ नहीं उठा सके क्योंकि उन्होंने रिश्वत नहीं दिया या फिर उन्होंने किसी बिचौलिये की मदद नहीं ली। दरअसल पिछले साल (यानी २००६) चार फीसदी से ज्यादा बीपीएल परिवार नरेगा, आवास की सेवा-सुविधा,पुलिस की सहायता और जमीन के दस्तावेज अथवा उसके पंजीकरण की सुविधा का लाभ उठाने से वंचित रहे क्योंकि उन्होंने ना बिचौलिये की मदद ली और ना ही घूस दिया।
  • यह भी एक तथ्य है कि जिन बीपीएल परिवारों ने सर्वेक्षण के दौरान सार्वजनिक सुविधाओं का हासिल करने के लिए घूस देने की बात स्वीकारी उन्होंने यह भी बताया कि घूस लेने वाला व्यक्ति सेवा प्रदान करने वाली मशीनरी का ही अधिकारी या कर्मचारी था और उसे घूस सीधे दी गई।यह अपने आप में गंभीर बात है क्योंकि सर्वेक्षण से यह बात भी सामने आयी कि बीपीएल परिवार के व्यक्तियों को सरकारी दफ्तर का बार बार चक्कर लगाना पड़ा और इसके पीछे कारण यह बताया गया कि संबंधित कर्मचारी या अधिकारी आज काम पर नहीं आया है या अभी मौजूद नहीं है।इससे यह धारणा बलवती होती है कि कोई कार्यक्रम खास गरीबों के लिए बना हो तब भी उसपर अमल के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमा कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कोई खास ध्यान नहीं देता।
  • दफ्तर में कागजाती कामकाज बहुत धीमी गति से होता है।इस वजह से गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को दफ्तरों में काम को समय से करवाने के लिए घूस देने को बाध्य होना पड़ता है।ऐसा नहीं कतरने पर उन्हें वांछित सुविधा से वंचित होना पड़ता है।अध्ययन के दौरान इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि राज्यों में बड़े पैमाने पर किये गए ई-गवर्नेंस के उपायों से स्थिति इतनी सुधरी हो कि लोगों को लगे कि सरकारी अमलों में भ्रष्टाचार कम हुआ है.
  • शोध मेंकुल ग्यारह सरकारी सेवाओं को आकलन के लिए शामिल किया गया था।इसमें पुलिस महकमा और जमीन के कागजात तैयार करने वाला महकमे को गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को सेवा हासिल करने के लिए सबसे ज्यादा घूस देना पड़ा। इसकी तुलना में स्कूली शिक्षा(बारहवीं कक्षा तक) और बैंकिंग सेवा में भ्रष्टाचार का स्तर कहीं नीचे था,लेकिन ये सेवायें भ्रष्टाचार मुक्त नहीं थीं।
  • गरीबों के लिए सरकार द्वारा मुहैया करायी जा रही सेवाओं को प्रदान करने में सर्वाधिक भ्रष्टाचार असम, जम्मू-कश्मीर, बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में था जबकि हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल,दिल्ली और पंजाब में भ्रष्टाचार का स्तर मंझोले दर्जे का था।
  • इस सिलसिले में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कुछ कार्यक्रम सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को लाभ पहुंचाने के लिहाज से बनाये गये हैं मगर सरकारी अमलो में व्याप्त भ्रष्टाचार कते कारण इन कार्यक्रमों का भी गरीबों को समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा था।
  • कुछ सेवाओं मसलन पुलिस महकमे में इस व्याप्त की व्यवस्था की गई है कि सेवा हासिल करने में देरी या दिक्कत हो रही हो तो इस शिकायत की सुनवाई की जाएगी। इस दावे के बावजूद गरीब परिवारों गरीब परिवार ना तो ऐसे महकमे ना तो गरीबों के बीच अपने भ्रष्टाचार मुक्त होने का भरोसा जगा पाये हैं और ना ही गरीब परिवारों को सेवा पहुंचाने के मामले में उनका रवैया बदला है।
  • कुल मिलाकर देखे तो पिछले साल (२००६) गरीबी रेखा के नीचे के जिन परिवारों ने पुलिस महकमा,जमीन के दस्तावेज तैयार करने और जमीन के पंजीकरण करने वाले महकमा या फिर सरकारी आवास मुहैया कराने वाले महकमे की सेवाएं लेनी चाहीं उनका कहना था कि इन महकमों में पहले की तुलना में भ्रष्टाचार बढ़ा है।
  • पूर्वोत्तर के राज्यों,पश्चिम बंगाल और दिल्ली में तुलनात्मक रुप से गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले ऐसे परिवारों की संख्या ज्यादा है जिन्हें बीपीएल कार्ड हासिल नहीं हो सका है।
  • शोध का आकलन है कि पिछले एक साल में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों ने सरकारी सेवाओं को हासिल करने के लिए ८८३० करोड़ रुपये चुकाये हैं(शोध में कुल ग्यारह सरकारी सेवाओं को शामिल किया गया था)।आकलन के मुताबिक गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों ने बतौर रिश्वत २१४८ रुपये सिर्फ पुलिस महकमे को चुकाये हैं।

 

हालात राज्यवार

 

  • ग्यारह सरकारी सेवाओं को अध्ययन के लिए शामिल किया गया था और इनको मुहैया कराने के मामले में केरल में भ्रष्टाचार का स्तर सबसे नीचे था।
  • हिमाचल प्रदेश: इस राज्य में अधिकांश सेवाओं में भ्रष्टाचार बाकी राज्यों की तुलना में कम था।
  • गुजरात: बाकी राज्यों की तुलना में यहां भ्रष्टाचार कम था लेकिन कुछ सेवाएं मसलन शिक्षा, भू-प्रशासन और न्यायपालिका में बाकी सेवाओं की तुलना में भ्रष्टाचार कहीं ज्यादा था।
  • आंध्रप्रदेश-इस राज्य में बाकी सेवाओं की तुलना में सरकारी अस्पताल और जल-आपूर्ति विभाग में भ्रष्टाचार कहीं ज्यादा था।
  • महाराष्ट्र: इस राज्य की नगरपालिकाएं देश की पांच सबसे भ्रष्ट सेवाओं में शुमार हैं।
  • छत्तीसगढ़: भ्रष्टाचार के मामले में इस राज्य की स्थिति मध्यप्रदेश की तुलना में बेहतर है।
  • पंजाब: पीडीएस,पुलिस न्यायपालिका और नगरपालिका का महकमा बाकी महकमों की तुलना में कहीं ज्यादा भ्रष्ट है।.
  • पश्चिम बंगाल : इस राज्य में जलापूर्ति के लिए जिम्मेदार महकमा देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट है।.
  • उड़ीसा : इस राज्य की न्यायपालिका देश की चार सबसे भ्रष्ट न्यायपालिकाओं में एक है।
  • उत्तरप्रदेश : यहां के बिजली आपूर्ति विभाग,स्कूली शिक्षा और आयकर विभाग में भ्रष्टाचार बाकियों की तुलना में ज्यादा है।
  • दिल्ली: दिल्ली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सेवाएं देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं।
  • तमिलनाडु : भ्रष्टाचार के पैमाने पर यह राज्य १२वीं पादान पर था लेकिन इस राज्य में स्कूली शिक्षा,अस्पताल,आयकर विभाग और नगरपालिका की सेवाएं देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट पायी गईं। आश्चर्य की बात यह कि तमिलनाडु में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बाकी राज्यों की तुलना में बेहतर है और यह राज्य शिक्षा के विकास-सूचकांक के लिहाज से भी बहुत आगे है।
  • हरियाणा: स्कूली शिक्षा,भू-प्रशासन और पुलिस महकमा बाकी राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा भ्रष्ट है।
  • झारखंड: भ्रष्टाचार के पैमाने पर इस राज्य की सेवाएं बिहार की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर हैं।
  • असम: यहां का पुलिस महकमा देश के सबसे भ्रष्ट पुलिस महकमों में एक है।बिजली-आपूर्ति का महकमा भी सबसे भ्रष्ट सेवाओं में एक है।
  • राजस्थान: यहां की न्यायपालिका देश की सबसे कम भ्रष्ट न्यायपालिकाओं में एक है।
  • कर्नाटक: भ्रष्टाचार के पैमाने पर यह राज्य चौथी पादान पर था क्योंकि कुछ महत्त्वपूर्ण सेवाएं जैसे-आयकर विभाग, न्यायपालिका, नगरपालिका और आरएफआई (ग्रामीण वित्तीय सेवा) जैसी सेवाओं की स्थिति यहां भ्रष्टाचार के लिहाज से बदतर थी लेकिन इस राज्य में बिजली आपूर्ति और स्कूली शिक्षा का महकमा बाकी राज्यों की तुलना में कहीं कम भ्रष्ट है।
  • मध्यप्रदेश: इस राज्य में गरीबों को सरकारी सेवा मुहैया कराने के मामले में सुधार कार्य शुरु किये गए हैं। इसके बावजूद यह राज्य भ्रष्टाचार के पैमाने पर सबसे भ्रष्ट सेवाओं वाले राज्यों में महज दो से ही पीछे यानी तीसरी पादान पर है।.
  • जम्मू-कश्मीर: अस्पताल और ग्रामीण वित्तीय सेवाओं को छोड़कर यहां बाकी सारी सेवाएं देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं।आश्चर्य नहीं कि यह राज्य देश के सबसे भ्रष्ट सरकारी सेवाओं वाले राज्यों में दूसरी पादान पर है।.
  • बिहार: शोध में अध्ययन के लिए कुल ग्यारह सरकारी सेवाओं को शामिल किया गया था और यह राज्य इन सेवाओं में भ्रष्टाचार के लिहाज से देश में सबसे आगे है।

 

(नोट: शोध में शामिल ग्यारह सेवाओं के नाम हैं-पुलिस सेवा (अपराध और यातायात), न्यायपालिका, भू-प्रशासन, नगरपालिका सेवाएं, सरकारी अस्पताल, सार्वजनिक वितरण प्रणाली(पीडीएस-राशन कार्ड और आपूर्ति) , आयकर विभाग (व्यक्ति की पहुंच),जलापूर्ति,स्कूल (१२ वीं कक्षा तक) , और ग्रामीण वित्तीय सेवाएं। स्रोत-ट्रान्सपेरेन्सी इंडिया इन्टरनेशनल का अध्ययन)



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